BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

विशिष्ट चालक की अवधारणा
(The Concept of Residues)

यदि हम मोटे तौर पर मानव-व्यवहार को विश्लेषित करें तो उस व्यवहार के दो पक्ष स्पष्ट हो सकते हैं एक तो अपेक्षाकृत अधिक स्थिर पक्ष होता है और दूसरा अस्थिर या परिवर्तनशील पक्ष। मानव- व्यवहार के स्थिर (constant) पक्ष को परेटो ने 'विशिष्ट चालक और परिवर्तनशील (variable) पक्ष को 'भ्रान्त-तर्क' कहा है। परेटो ने यह स्वीकार किया है कि ये नाम केवल सुविधाजनक संकेत शब्द है और यदि कोई चाहे तो इसके स्थान पर अन्य किसी संकेत का भी प्रयोग कर सकता है।

मानव-व्यवहार के उन स्थिर तत्वों का, जिन्हें कि उन्होंने 'विशिष्ट चालक' कहा है, परेटो ने अधिक स्पष्टीकरण नहीं किया है और यह सुझाव दिया है कि इसके विषय में मनोवैज्ञानिकों को और अधिक अध्ययन करना चाहिए। कुछ भी हो, समाजशास्त्रियों के लिए यह बहुत ही मूल्यवान् तथा महत्त्वपूर्ण है। परेटो की कृतियों से 'विशिष्ट चालक' के सम्बन्ध में जो कुछ भी ज्ञात होता है वह निम्नलिखित है -

मानव व्यवहार के निर्धारण में प्रेरणाओं का बहुत बड़ा हाथ होता है। परेटो का 'विशिष्ट चालक' विशेष प्रकार की प्रेरणाएँ हैं। ये 'विशिष्ट चालक' प्रेरणाओं की अपेक्षा अधिक स्थिर होती हैं और इसी कारण मानव-व्यवहार को संचालित और नियन्त्रित करने में इनका पर्याप्त योग होता है। परेटो की व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि यह विशिष्ट चालक न तो मूल प्रवृत्ति है और न भावना ही। इन विशिष्ट चालकों के सम्बन्ध में परेटो ने जो कुछ बताया है, उससे इनका अधिक-से-अधिक स्पष्टीकरण या परिभाषा यह हों सकती है कि विशिष्ट चालक मूल प्रवृत्तियों और भावनाओं की अभिव्यक्ति है। परेटो के शब्दों में, "जिस प्रकार थर्मामीटर में पारे का चढ़ना ताप के बढ़ने की अभिव्यक्ति है, उसी प्रकार विशिष्ट चालक मूल- प्रवृत्तियों और भावनाओं की अभिव्यक्ति है।" ये विशिष्ट चालक, जैसाकि पहले ही कहा जा चुका है, अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं। इनकी स्थिरता चाहे मूल प्रवृत्तियों के कारण हो या भावनाओं के कारण या अन्य किसी कारण से, परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये अधिक अस्थिर तत्व नहीं होते।

उक्त विवेचना के आधार पर विशिष्ट चालकों की तीन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है-

1. विशिष्ट चालक अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं,

2. विशिष्ट चालक स्वयं मूल प्रवृत्ति या भावना नहीं होती वरन् इसकी अभिव्यक्ति होती है; और

3. विशिष्ट चालकों में तार्किक तत्व नहीं होते और न ही तार्किक आधार पर इनकी व्याख्या की जा सकती है या इन्हें समझाया जा सकता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विशिष्ट चालक आलपोर्ट द्वारा वर्णित 'शक्तिशाली प्रतिक्षेप (Prepotent Reflexes), या पेटराजिट्स्की द्वारा उल्लिखित संवेगों आदि से सम्बन्धित हैं।

परेटो के पहले के समाजशास्त्रियों के लेखों में भी कुछ ऐसी शक्तियों का उल्लेख मिलता है जो सामाजिक सन्तुलन की व्याख्या करती हैं। अतः हम कह सकते हैं कि भूतकाल में भी समाजशास्त्रियों द्वारा अनजाने ही में विशिष्ट चालकों को खोजा गया है, परन्तु उन खोजों का कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण उनके लेखों में नहीं मिलता है। परेटो ने उनकी कमी को दूर करने का सचेत प्रयत्न किया, यद्यपि उनके लेखों में भी हमें इस विषय का कोई विशेष स्पष्टीकरण नहीं मिलता है। परेटो ने लगभग पचास विशिष्ट चालकों की चर्चा की है, किन्तु वे निम्नलिखित छः श्रेणियों में आते हैं-

1. सम्मिलन के विशिष्ट चालक।
2. समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालक।
3. बाह्य क्रियाओं द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालक या आवश्यकताएँ।
4. सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक।
5. व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक।
6. काम-सम्बन्धी विशिष्ट चालक।

इन विशिष्ट चालकों के विषय में जो कुछ परेटो ने कहा है वह संक्षेप में इस प्रकार है-

1. सम्मिलन के विशिष्ट चालक (Residues of Combination) - सम्मिलन के विशिष्ट चालक परस्पर समान या विरोधी तत्वों को मिलने वाली प्रेरणाएँ हैं। परन्तु इस प्रकार के सम्मिलन का प्रायः कोई तर्कसंगत कारण नहीं होता, यद्यपि हम उनमें अपने विश्वास को उत्पन्न करने और बनाए रखने के लिए कोई-न-कोई उलटा-सीधा तर्क ढूँढ़ने का प्रयत्न अवश्य ही करते हैं। इस प्रकार के विशिष्ट- चालक के प्रभाव के कारण होने वाले परस्पर समान या विरोधी तत्वों या चीजों के सम्मिलन के अच्छे उदाहरण स्वप्न में देखी गई चीजों के आधार पर हमारे विश्वास से दिए जा सकते हैं। परस्पर समान चीजों का मेल हम इस प्रकार करते हैं- तितली देखने में सुन्दर और प्यारी होती है, इसी आधार पर हम विश्वास करते हैं कि सपने में तितली को देखना आने वाले सुख का द्योतक है। इसके विपरीत, परस्पर विरोधी चीजों का मेल हम इस प्रकार करते हैं- यदि हम सपने में अपने को सुन्दर देखते हैं, तो उसका अर्थ होता है कि हम शीघ्र ही बीमार पड़ने वाले हैं। सपने में सोना ( gold) देखना आर्थिक हानि का द्योतक है। जादू से सम्बन्धित एक नियम के अनुसार यह विश्वास किया जाता है कि समान वस्तु, समान वस्तु पैदा करेगी ही। उदाहरणार्थ, कुछ लोगों का ऐसा विश्वास है कि किसी शत्रु को चोट पहुँचाना या. मारना है तो उस शत्रु की मूर्ति का निर्माण कर उस पर चोट पहुँचानी चाहिए, मूर्ति को जहाँ-जहाँ चोट लगाई जायेगी, उन्हीं स्थानों पर शत्रु को भी चोट पहुँचेगी। कुछ जनजातियों के लोग वर्षा लाने के लिए आग जलाते हैं और खूब धुआँ करते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि धुएँ और बादल में समानता है, इसलिए समान वस्तु (धुआँ सदैव समान वस्तु जैसे बादल) उत्पन्न करेगी और वर्षा होगी। इस प्रकार के विश्वासों का कोई तार्किक आधार नहीं होता है, यह तो वास्तव में वास्तविकता पर एक पर्दा है, और वास्तविकता पर इस प्रकार का पर्दा डालना ही सम्मिलन के विशिष्ट चालक का कार्य है।

2. समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालक (Residues of the Persistence of Aggregates) - ये वे प्रेरणाएं हैं जो मनुष्य के पारस्परिक सम्बन्धों, मनुष्य एवं स्थानों के बीच सम्बन्धों तथा जीवित और मृत व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों को स्थायित्व प्रदान करती हैं। ये विशिष्ट चालक मनुष्य की भावनाओं की अभिव्यक्ति होती हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती हैं। इनके प्रति लोगों के दिल में आदर भाव होता है। इन्हीं विशिष्ट चालकों से चालित होकर हम अपने परिवार, नगर, देश या प्रजाति के या इनके सदस्यों के साथ अपना सम्बन्ध बनाए रखते हैं और उन्हें सम्मान प्रदान करते हैं, अपने मरे हुए सम्बन्धियों को याद करते हैं; उनके समाधि स्थलों पर जाकर फूल चढ़ाते हैं, इतिहास के महापुरुषों से अपना सम्बन्ध बनाये रखने के लिए उनकी जयन्तियाँ मनाते हैं और उनके जीवन से सम्बन्धित स्थलों को देखने जाते हैं। समूह की स्थिरता या स्थायित्व में इस श्रेणी में आने वाले विशिष्ट- चालकों का महत्वपूर्ण हाथ होता है।

3. बाह्य क्रियाओं द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालक या आवश्यकताएँ (Residues or Needs of the Manifestation of Sentiments through Exterior Acts) - इस श्रेणी के अन्तर्गत उन विशिष्ट चालकों को सम्मिलित किया जाता है जो कि हमें अपनी भावनाओं को बाह्य क्रियाओं द्वारा प्रदर्शित करने के लिये प्रेरित करते हैं। उदाहरणार्थ, हमारी राष्ट्रीयता की भावना अपने को दासता के बन्धन से मुक्त करने के लिए हमें राजनीतिक आन्दोलन या विद्रोह करने को प्रेरित करती है। उसी प्रकार धर्म से सम्बन्धित भावनाओं की अभिव्यक्ति पूजा-पाठ, प्रार्थना आदि बाह्य क्रियाओं के रूप में होती है। इस प्रकार के विशिष्ट चालक पशुओं में भी होते हैं। जैसे, अपने मालिक को देखकर कुत्ता खुशी से अपनी पूँछ हिलाने लगता है।

4. सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक (Residues in regard to Sociability) - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे विशिष्ट चालक सम्मिलित किए जाते हैं जो कि मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाते हैं। उनके द्वारा हमें इस बात की प्रेरणा मिलती है कि हम अपने आचरणों या व्यवहारों को अपने उस छोटे या बड़े समूह के अनुरूप बनाएँ जिसके कि हम सदस्य हैं। संक्षेप में, ये विशिष्ट चालक हमें अपने व्यवहारों को अन्य व्यक्तियों के समान बनाने की प्रेरणा देते हैं, और इसी उद्देश्य से प्रत्येक व्यक्ति, जिस सामाजिक समूह का वह सदस्य है, उसकी रीति को अपनाता है। दया. क्रूरता, आत्म-बलिदान, श्रेष्ठता अथवा हीनता की भावना, नवीनता के भय आदि इस श्रेणी के विशिष्ट चालको के उदाहरण हैं। इस सम्बन्ध में यह प्रश्न उठ सकता है कि क्रूरता किस प्रकार सामाजिकता उत्पन्न कर सकती है? इसकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि जब व्यक्ति अपने तथा अपने समूह के व्यवहार में प्रत्येक प्रकार से एकरूपता उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है, और उस प्रयत्न में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो स्वभावतः वह क्रूर हो जाता है। क्रूरता व्यक्ति की इस इच्छा की अभिव्यक्ति है कि वह उस बाधा को नष्ट करना चाहता है। सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक का एक सबसे अधिक रोचक उपविभाजन तापसीवाद है जो कि इस प्रकार के त्याग द्वारा या शरीर को कष्ट देने की साधना द्वारा अभिव्यक्त होता है। ये सभी विशिष्ट चालक सामाजिक एकरूपता को उत्पन्न करने वाले और सामाजिक संगठन को दृढ़ करने में सहायक होते हैं।

5. व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक (Residues of the Integrity of Personality) - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे प्रेरणाएँ आती हैं जोकि व्यक्तित्व के विभिन्न तत्वों या लक्षणों को संगठित या संयोजित करती हैं। इन्हीं विशिष्ट चालकों के कारण हम उन प्रयत्नों का विरोध करते हैं जो कि सामाजिक या व्यक्तित्व सम्बन्धी सन्तुलन को नष्ट करने वाले होते हैं। यही विशिष्ट चालक हमें व्यक्तित्व के विभिन्न और बिखरे हुए तत्वों को फिर से बटोरने और व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देते हैं। उचित और अनुचित का ज्ञान हमें इन्हीं चालकों से होता है जिसके कारण एक नैतिक स्तर बनाए रखने में हमें सहायता मिलती है। इसीलिए बहुधा हम अपने ऊपर तथा अपने समाज के ऊपर होने वाले अनैतिक या अनुचित आक्रमण का विरोध करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम विश्वास करते हैं कि इस प्रकार के आक्रमणों से हमारा या समाज का नैतिक पतन हो सकता है, या हमारे व्यक्तित्व और समाज में विघटन की अवस्था उत्पन्न हो सकती है।

6. काम-सम्बन्धी विशिष्ट चालक (Sexual Residues) - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे प्रेरणाएँ आती हैं जोकि यौन क्षुधा या काम-वासनाओं से सम्बन्धित हैं। ये विशिष्ट चालक प्रायः जटिल रूपों में मिलते हैं और कभी-कभी इनको नियन्त्रित करने के लिए समाज को यौन सम्बन्धी निषेधों को लागू करना पड़ता है। इसी की अभिव्यक्ति 'यौन-धर्म' के रूप में होती है।

परेटो के अनुसार, उपरोक्त विशिष्ट चालक प्रत्येक समाज में पाए जाते हैं और वे सभी सामाजिक प्राणी की अपेक्षा अधिक स्थिर तत्व भी हैं। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इन विशिष्ट चालकों की शक्ति और वितरण या अनुपात समस्त व्यक्तियों और समूहों में एक-सा होता है। वास्तव में इनकी शक्ति और अनुपात विभिन्न कालों और विभिन्न व्यक्तियों तथा सामाजिक समूह में भिन्न-भिन्न होता है। ऐसे बहुत-से व्यक्ति हैं जिनमें काम-सम्बन्धी विशिष्ट चालक अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं। दूसरी ओर ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिन पर इनका प्रभाव बहुत कम होता है। उसी प्रकार ऐसे समूह तथा व्यक्ति हैं जिनमें सम्मिलन के विशिष्ट चालकों का प्रभुत्व होता है, और ऐसे भी समूह या व्यक्ति हैं जिनमें इनका अभाव भी दिखता है। वास्तविकता यह है कि कोई भी सामाजिक व्यवस्था है जिनमें इनका अभाव भी दिखता है। वास्तविकता यह है कि कोई भी सामाजिक व्यवस्था किसी अन्तिम या पूर्ण रूप से स्थिर सिद्धान्त के आधार पर नहीं चलती बल्कि यह सदैव सापेक्षिक होती है और इसमें परिवर्तन भी होता जाता है। इस प्रकार परेटो के अनुसार, विशिष्ट विचार समय-कारक और सामाजिक परिस्थितियों से सम्बन्धित हैं और इनमें परिवर्तन के साथ-साथ ये स्वयं भी परिवर्तित होते रहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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